नई दिल्ली। भारतीय शोधकर्ताओं को हड़प्पा सभ्यता से जुड़े प्रमुख स्थल धोलावीरा में रडार तकनीक के जरिए जमीन के नीचे छिपी कई पुरातात्विक विशेषताओं का पता लगाने में सफलता मिली है। इससे यह संकेत मिलता है कि हड़प्पा के लोगों को हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग में महारत हासिल थी। बता दें कि धोलावीरा भारत में हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े और सबसे प्रमुख पुरातात्विक स्थलों में से एक है। यह गुजरात के कच्छ जिले के मचाऊ तालुका में मासर और मानहर नदियों के मध्य स्थित है।
किसने किया शोध ?
गांधीनगर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र का अध्ययन करने के बाद ये नतीजे निकाले हैं। शोधकर्ताओं ने पिछले दिनों धोलावीरा के 12,276 वर्ग मीटर क्षेत्र का ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक की मदद से सर्वेक्षण किया। बता दें कि जीपीआर तकनीक की मदद से किसी भूक्षेत्र में जमीन की स्कैनिंग करके उसके भीतर दबी हुई चीजों का पता लगाया जा सकता है। यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘करंट साइंस’ में प्रकाशित किया गया है।
क्या कहते हैं शोध के नतीजे ?
अध्ययन टीम का नेतृत्व कर रहे डॉ. अमित प्रशांत ने बताया कि धोलावीरा में दबे पुरातात्विक ढांचे शायद पत्थर और ईंटों से बने हुए हैं। यही कारण है कि वस्तुओं और माध्यम के बीच बेहद कम अंतर पता चल पाता है। हमारे द्वारा विकसित विशेष प्रसंस्करण टूल का उपयोग करके अध्ययन के दौरान बेहद कमजोर रडार संकेतों का विश्लेषण किया गया है। यह टूल रडार संकेतों को मैग्नीफाई करके ऑब्जेक्ट्स का आसानी से पता लगा सकता है।
छोटे-छोटे उथले जलाशय मिले
डॉ. प्रशांत बताते हैं कि सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों से छोटे-छोटे उथले जलाशयों के समूह का पता चला है। माना जा रहा है कि ये जलाशय पहले से ज्ञात पूर्वी जलाशयों से जुड़े रहे होंगे। वर्तमान में इन जलाशयों की गहराई लगभग 2.5 मीटर है। इसके अलावा, कई अन्य संरचनाएं भी मलबे में पाई गई हैं। इन निष्कर्षों के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि पूर्व में इस क्षेत्र में चेक डैम का अस्तित्व रहा होगा। ये बाद में मनहर नदी में बाढ़ के कारण नष्ट हो गए होंगे। यह भी अनुमान लगाया गया है कि बाढ़ के दौरान पानी का अति-प्रवाह इस क्षेत्र की ओर रहा होगा, जिसने वहां मौजूद संरचनाओं को नुकसान पहुंचाया होगा।
जल संचयन प्रणाली की अच्छी समझ
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि पूर्व के विशाल जलाशयों और खुदाई के दौरान मिले जलाशयों की श्रृंखला से पता चलता है कि हड़प्पा के लोगों में जल संचयन प्रणाली की बेहतर समझ रही होगी। स्कैनिंग के दौरान यह भी पता चला कि इस क्षेत्र में भी इसी तरह के जलाशयों, बांध, चेक-डैम, चैनल्स, नाले और वाटर टैंक रहे होंगे। यही नहीं, जीपीआर से मिले आंकड़ों में छोटी आवासीय संरचनाओं के विपरीत बड़े आकार के जलाशय जैसी संरचनाओं के होने का अनुमान भी लगाया गया है।
हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट ज्ञान
जीपीआर से जो आंकड़े मिले हैं, उनसे स्पष्ट प्रमाण मिलता है कि हड़प्पा के लोगों के पास हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट ज्ञान था। बाढ़ के दौरान पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए चेक डैम बनाए गए थे, जबकि छोटे जलाशय पूर्व के जलाशयों को सुरक्षित रखते थे। इस अध्ययन से पता चलता है कि चेक डैम और छोटे जलाशयों में बाढ़ की स्थिति में समय के साथ थोड़ी-बहुत टूट-फूट हुई होगी, लेकिन चरम स्थितियों के बावजूद ज्यादातर जलाशय अब भी सुरक्षित हैं। इसी से हड़प्पा के लोगों में हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का बेहतर ज्ञान होने का अंदाजा लगाया जा रहा है।
क्या कहते हैं शोधकर्ता ?
धोलावीरा कच्छ के रण में स्थित नमक के विशाल मैदानों से घिरा है और इसमें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर भी शामिल हैं। यह शहर लगभग 3000 से 1700 BC तक था, जो लगभग 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। इसमें से 48 हेक्टेयर क्षेत्र की किलेबंदी की गई थी। शोधकर्ताओं का कहना है कि शहर के अंदर कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनकी छानबीन नहीं की गई है। माना जा रहा है कि इन क्षेत्रों में इस प्राचीन शहर के खंडहर हो सकते हैं। शोधकर्ता कहते हैं कि रडार से प्राप्त आंकड़े पुरातत्विदों को भविष्य में खुदाई से पहले बेहतर कार्ययोजना बनाने में मददगार हो सकते हैं, जिससे जमीन के नीचे दबी संरचनाओं को नुकसान न पहुंचे।