यदि किसी राजनीतिक दल को सत्ता में बने रहना है तो उसे जन सामान्य के हित में कल्याणकारी और विकास परियोजनाओं पर ध्यान देना जरूरी है। ऐसे प्रयासों से ही कोई पार्टी लोगों के मन में अपनी असाधारण छवि बनाने और अगले चुनावों में अधिकतम समर्थन हासिल करने में सफल हो सकती है। लेकिन उत्तर भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दल (बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी) ऐसे हैं, जिन्होंने कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अपनी छवि बनाने की बजाय मूर्तियों और निरर्थक परियोजनाओं के निर्माण पर अनाप-शनाप खर्च कर अपनी पार्टी की पहचान बनाने का काम किया है।
नीति की समीक्षा
रिपोर्ट : सौजन्य त्रिपाठी / अनुवाद : धर्मेन्द्र त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती ने लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में बसपा के संस्थापक कांशीराम की और खुद अपनी विशाल आकार की मूर्तियां लगवा कर इस तरह की गलत परम्परा की शुरुआत की थी। यही नहीं, उन्होंने हजारों करोड़ रुपये खर्च कर गोमतीनगर पार्क में भी हाथियों की हजारों मूर्तियां लगवाईं। शायद उन्होंने सोचा होगा कि ऐसा करने से लोगों के दिमाग में उनकी पार्टी की एक अमिट छवि बनेगी। हालांकि, ऐसा नहीं होना था और न हुआ। मायावती को लगातार इसकी कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी और आखिरकार 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथों उनकी पार्टी की बुरी तरह हार हुई।
इसके बाद यूपी में अगली सरकार समाजवादी पार्टी की बनी और अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की बागडोर संभाली। लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि उन्होंने भी अपनी पूर्ववर्ती मायावती की सरकार की गलतियों से कुछ नहीं सीखा और उसी तरह की गलती को प्रदेश में जगह-जगह साइकिल ट्रैक बनवाकर दोहराया। गौरतलब है कि ‘साइकिल’ उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न भी है। वह राजधानी लखनऊ के प्रमुख स्थानों के साथ-साथ इलाहाबाद, नोएडा, कानपुर, आगरा, गोरखपुर और वाराणसी जैसे प्रमुख जिलों में अंधाधुंध साइकिल ट्रैक्स बनवाते चले गए।
मास अपील या जबरन संदेश?
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हालांकि फिटनेस, स्वास्थ्य, सहज यातायात और पर्यावरण को बढ़ावा देने की आड़ में साइकिल ट्रैक परियोजना को तर्कसंगत बताया। लेकिन वास्तविकता यह है कि अखिलेश का साइकिल ट्रैक भी मायावती की हाथियों की तरह ही बेमतलब साबित हुआ और इसका परिणाम भी प्रदेश के हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में देखने को मिला।
अखिलेश यादव को साइकिल ट्रैक के निर्माण का विचार नीदरलैंड, जर्मनी और फ्रांस को देखकर आया था, जहां करीब 60 प्रतिशत लोग साइकिल से चलते हैं। प्रदूषण मुक्त परिवहन व्यवस्था की ओर आकर्षित होकर अखिलेश ने अध्ययन के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भी नीदरलैंड भेजा था।
सदुपयोग या दुरुपयोग
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, 270 किमी लंबे साइकिल ट्रैक के निर्माण पर करीब 260 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इतनी भारी-भरकम रकम खर्च करने के बाद भी यह परियोजना अपने असली उद्देश्यों में विफल रही है।
जैसा कि रिकॉर्ड बताते हैं, केवल 20-30% साइकिल चालकों ने ही इस साइकिल ट्रैक का इस्तेमाल किया। इसकी बजाय यह रिक्शा, ठेला चालकों और बाइक वालों के लिए महज पार्किंग का स्थान बनकर रह गया है। इसका सबसे ज्यादा लाभ फुटपाथ विक्रेताओं को हुआ। उन्हें रोड के बीच में अपना माल लगाकर बेचने की जैसे खुली छूट मिल गई। यही नहीं, मुख्य सड़क पर भीड़ होने की वजह से बाइक सवारों ने तो साइकिल ट्रैक को वैकल्पिक मार्ग के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसके अलावा, साइकिल ट्रैक की वजह से सड़क निर्माण कार्यों और अन्य विकास परियोजनाओं में बाधा भी उत्पन्न होने लगी।
यही कारण है कि निर्माण के कुछ ही महीनों बाद सड़कों पर यातायात की भीड़ को कम करने के लिए सड़कों को चौड़ा करना जरूरी हो गया और इसके लिए अब जगह-जगह साइकिल ट्रैक को तोड़ा जा रहा है। इसी वजह से लखनऊ में टेढ़ी पुलिया से कुर्सी रोड तक के साइकिल ट्रैक को हटा दिया गया। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहेंगे कि एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसमें भारी-भरकम धनराशि खर्च हुई थी, उसे बिना किसी ठोस योजना के तैयार किया गया। अब सड़कों को चौड़ा करने के लिए दोबारा से बड़ा निवेश किया जाएगा।
लखनऊ में साइकिल ट्रैक
- चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डे (कानपुर रोड) से शुरू होकर तेलीबाग, बंगला बाज़ार, निराला अगर, बक्शी का तालाब, अलीगंज, मडि़यांव, विकास नगर, खुर्रम नगर, कुर्सी रोड और कपूरथला होते हुए गोमतीनगर और चिनहट तक।
- फैजाबाद रोड पर, 21 किलोमीटर लंबा साइकिल ट्रैक जिसमें बाहरी रिंग रोड, गोमतीनगर, शहीद पथ और इंदिरा नगर क्षेत्र शामिल हैं।
- विक्रमादित्य मार्ग, कुर्सी रोड, के.डी. मार्ग, लोहिया-पथ और ला मार्टीनियर कॉलेज को जोड़ने वाले साइकिल ट्रैक का फैलाव 103 किलोमीटर तक है।
गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के शासन के दौरान भी राज्य में साइकिल ट्रैक का निर्माण कराया था। उस समय लोहिया पथ पर लगभग 6 किलोमीटर लंबा साइकिल ट्रैक बनाया गया था जिसका इस्तेमाल नहीं हो पाया और अंतत: पीडब्ल्यूडी ने सड़क को चौड़ा करने के लिए साइकिल ट्रैक को तोड़ दिया।
क्या कहती है पार्टी
समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि लोगों को स्वस्थ रखने में साइकिल ट्रैक की बेहद प्रभावशाली भूमिका है। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या साइकिल ट्रैक का निर्माण वास्तव में उनकी पार्टी को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया गया तो श्री चौधरी ने इसका कोई सीधा उत्तर देने की बजाय कहा कि पार्टी का प्रचार करने के और भी कई तरीके हैं।
सच पूछा जाए तो बेजान हाथियों की मूर्तियों के निर्माण पर अरबों रुपये खर्च करने और निरर्थक साइकिल ट्रैक बनाने से बेहतर था कि राज्य में विकास परियोजनाओं और रोजगार निर्माण की अन्य गतिविधियों पर इस धनराशि का इस्तेमाल किया गया होता। अब देखते हैं कि वर्तमान सरकार के पास राज्य के लिए नया उपहार क्या है!